एक कुशल कारीगर था | वह भवन निर्माण का काम करता था | उसकी उम्र लगभग 60 बरस हो गई थी | उम्र के प्रभाव के कारण उसे अब कम ही काम मिल पाता था | काम करवाने वाले यह सोचते थे कि यह कारीगर बुजुर्ग होने की वजह से कम ही काम कर सकेगा | पूरी मेहनत से और अच्छा काम करने के बावजूद भी मुश्किल से आधा पेट भोजन की ही व्यवस्था हो पाती थी |
एक दिन बुजुर्ग कारीगर की भेंट एक साधु से हुई उसने साधु से प्रार्थना की कि "यदि भगवान आपको मिले तो आप उनसे पूछना मेरी मुश्किलों और अभाव का अंत कब होगा" | कुछ दिनों के बाद उस कारीगर की साधु से दोबारा भेंट हुई | कारीगर ने उसे अपनी कही हुई बात के बारे में याद करवाया | साधु ने कहा कि भगवान ने बताया है कि आप की आयु पांच वर्ष और शेष है | बचा हुआ शेष जीवन जीने के लिए आपके भाग्य में सिर्फ पांच बोरी अनाज ही लिखा हुआ है | इसी कारण प्रभु आप को थोड़ा-थोड़ा करके ही अनाज देते हैं ताकि आप अपना शेष जीवन जी सको |
कारीगर ने साधु से फिर कहा संत जी अब जब भी आपकी भगवान से मुलाकात हो तो उन्हें मेरी ओर से प्रार्थना करना की मेरे जीवन का सारा अनाज मुझे एक साथ ही दे दे ताकि कम से कम मैं एक दिन भरपेट भोजन कर सकूं | अगले दिन साधु ने अपने भक्तों से कहकर पांच बोरी अनाज कारीगर के घर में भिजवा दिया | कारीगर को लगा कि भगवान ने उसकी प्रार्थना सुन ली है उसके भाग्य का सारा अनाज इकट्ठा भेज दिया | उसने अपने भविष्य की चिंता किए बिना सारे अनाज का भोजन बनवा कर भूखे और अभावग्रस्त लोगों को प्रेम और विनम्रता से भोजन करवाया और स्वयं भी भरपेट भोजन किया |
पढ़िए : मासूम की पुकार
पूरे शहर में इस भंडारे के आयोजन के चर्चे हुए | उसका कारण यह था कि यह आयोजन एक ऐसे व्यक्ति द्वारा किया गया था जो की खुद ही भरपेट भोजन खाने में असमर्थ था | अगले दिन शहर के जिन व्यक्तियों ने भी दान करना था उन सभी ने दान में देने वाला अनाज कारीगर के घर भिजवा दिया | कारीगर ने देखा कि अगले दिन भी लगभग पांच बोरी अनाज की व्यवस्था हो गई थी | उसने फिर से उस सारे अनाज से भोजन बनवाया और गरीबों को भरपेट भोजन खिला दिया | अब तो यह रोज का ही नियम बन गया था | कारीगर मजदूरी करने के स्थान पर गरीबों को भोजन करवाने में व्यस्त रहने लगा |
कुछ दिन के बाद अचानक कारीगर को साधु फिर से मिला तो साधु ने पूछा "स्वामी जी आप तो कह रहे थे कि मेरे भाग्य में केवल पांच बोरियां अनाज ही लिखा है लेकिन अब तो हर दिन ही मेरे घर पांच बोरी अनाज पहुंच जाता है” | साधु ने उसे समझाया कि आपने अपने शेष जीवन की और मुश्किलों की चिंता किए बगैर अपने हिस्से का अनाज गरीब और भूखों में बांट कर उन्हें खुशी और संतुष्टि दी थी | इसलिए भगवान उनके हिस्से का अनाज आपको रोज भेज देते हैं | भंडारा आदि करवाने का अहंकार नहीं करना चाहिए बल्कि यह समझना चाहिए कि भगवान ने गरीबों तक भोजन पहुंचाने के लिए हमें एक साधन बनाया है |
No comments:
Post a Comment