विश्वामित्र जी तपस्या को श्रेष्ठ
समझते थे क्योंकि उन्होंने वर्षों कठिन तप करके अनेक ऋद्धियाँ-सिद्धियां प्राप्त की
थी | उनके विचार से भक्ति का यही मार्ग सर्वश्रेष्ठ था | उन्हें कुछ हद तक अपने किये
हुए तप के कारण अभिमान भी हो गया था | दूसरी ओर वशिष्ट जी सत्संग को भक्ति का श्रेष्ठ मार्ग मानते थे | क्योंकि वशिष्ट
जी ने अपना अधिकांश जीवन संतो के साथ भगवान का सत्संग करने में ही बिताया था | एक बार
धार्मिक चर्चा करते हुए विश्वामित्र और वशिष्ठ जी में यह बहस हो गई कि तप और सत्संग
में से श्रेष्ठ क्या है |
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वह ब्रह्मा जी के पास गए और उनसे
पूछा कि "तप और सत्संग में श्रेष्ठ क्या है आप इसका निर्णय करें" | ब्रह्मा
जी जानते थे इनमें से एक का भक्ति का मार्ग तप है तो दूसरे का भक्ति का मार्ग सत्संग
है | किसी एक के पक्ष में निर्णय करने से दूसरे का नाराज होना स्वाभाविक है | इसलिए
उन्होंने इस विवादास्पद प्रश्न का उत्तर देना उचित नहीं समझा | उन्होंने कहा कि
"आप विष्णु जी के पास जाकर इसका सही निर्णय करवा लें क्योंकि मैं सृष्टि की रचना
करने के कार्य में व्यस्त हूं" |
वहां से वह दोनों सीधे विष्णु
जी के पास पहुंचे और उनसे भी वही प्रश्न किया | विष्णु जी ने सोचा की किसी एक के पक्ष में
निर्णय देने से दूसरे की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचेगी | उन्होंने भी इस प्रश्न
का उत्तर न देना ही बेहतर समझा | उन्होंने इन दोनों को टालने के लिए कहा कि "मैं
सृष्टि का पालन करने में व्यस्त हूं, आप इस प्रश्न का उत्तर शंकर भगवान से पूछे वहीं
इसका बेहतर निर्णय करने में सक्षम हैं " |
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वह दोनों कैलाश पर्वत पर पहुंचे
और शंकर भगवान से प्रार्थना की कि "आप तप और सत्संग में श्रेष्ठ कौन है इसका निर्णय
करें" | शंकर भगवान ने कहा कि शेषनाग ही आपको इस बारे में सबसे बेहतर तरीके से
समझा पाएंगे | अंत में दोनों शेषनाग के पास पहुंचे और उनके पास आने का कारण बताया
|
शेषनाग जी ने कहा "मैं आपका
निर्णय कर दूंगा | लेकिन मैंने सारी पृथ्वी का भार अपने सिर पर उठाया हुआ है | यदि
आप में से कोई पृथ्वी को कुछ समय के लिए उठा ले तो मैं अपने दिमाग से सोच समझकर सही
निर्णय दे पाने में समर्थ हो जाऊँगा" | विश्वामित्र जी को अपने तप पर बहुत अभिमान
था उन्होंने शेषनाग से कहा कि "आप पृथ्वी को मेरे सर पर रख दीजिए" | विश्वामित्र
जी ने पृथ्वी को अपने सिर पर उठा लिया लेकिन वह
उसका भार सहन करने में असमर्थ थे | पृथ्वी का संतुलन बिगड़ रहा था और वह नीचे
रसातल की ओर जा रही थी | शेषनाग जी बोले "विश्वामित्र जी पृथ्वी को सावधानी से
संभालिए" | विश्वामित्र जी ने कहा कि मैं "पृथ्वी को रसातल में जाने से रोकने
के लिए अपना सारा तप देता हूं" | लेकिन पृथ्वी रसातल में जाने से नहीं रुकी |
तब वशिष्ठ जी ने कहा "मैं पृथ्वी को रोकने के लिए आधी घड़ी का सत्संग देता हूं"
| चमत्कारिक रूप से पृथ्वी रसातल में जाने से रुक गई | शेषनाग जी ने पृथ्वी को पुनः
अपने सिर पर धारण कर लिया और कहने लगे "अब आप प्रस्थान कीजिए" | विश्वामित्र
जी ने कहा कि "आपने हमें अपना निर्णय तो सुनाया ही नहीं" | शेषनाग जी ने
कहा "तप से सत्संग श्रेष्ठ होता है इसका निर्णय तो हो गया है | आपके पूरे जीवन
की तपस्या से भी जो कार्य नहीं हो सका वह आधी घड़ी के सत्संग से ही हो गया" |
हमें सत्संग सुनना भी चाहिए और सत्संग में बताए गए ज्ञान के मार्ग पर चलकर अपना जीवन
सफल बनाना चाहिए |
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