एक साधु था | वह सांसारिक मोह
माया को त्याग चुका था | एक दिन उसे रास्ते में एक घायल घोड़े का बच्चा मिला | साधु को उस पर दया आ गई | वह उस घोड़े के
बच्चे को अपने आश्रम में ले आया | साधु स्वयं उसकी देखभाल करता और उसे खिलाता पिलाता
था | घोड़ा अच्छी नस्ल का था | कुछ ही दिनों में उस घायल घोड़े के बच्चे का शरीर तंदुरुस्त
और मजबूत हो गया | कुछ ही समय में साधु को उस घोड़े से मोह हो गया था | वह रोज शाम को
उसके ऊपर बैठकर चार पांच किलोमीटर की सैर करता
था | घोड़े के दौड़ने की रफ्तार इतनी तेज थी कि वह हवा से बातें करता था | साधु
उस घोड़े की ऊंची कद-काठी और दौड़ने की रफ्तार को देख कर प्रसन्न होता रहता था |
जल्द ही उस घोड़े की प्रसिद्धि
चारों दिशाओं में फ़ैल गयी थी | उस इलाके में गब्बर सिंह नाम का एक मशहूर डाकू भी रहता
था | उसके कानों में भी इस घोड़े की प्रशंसा के शब्द पहुंचे | वह इस घोड़े को देखने के लिए उत्सुक हो गया | एक दिन वह
साधु के आश्रम में पहुंच गया | उसने साधु को मिलकर अपना परिचय दिया | साधु सरल स्वभाव
का था | उसने डाकू का भी स्वागत-सत्कार किया
उसको घोड़ा भी दिखा दिया | डाकू गब्बर सिंह ने घोड़े को भागते हुए देखने की
भी इच्छा जाहिर की | साधु ने उस घोड़े पर सवारी करके गब्बर सिंह को दिखा दिया | डाकू
गब्बर सिंह भी घोड़े के भागने की रफ्तार को देखकर प्रभावित हुआ | वह सोचने लगा कि इतना
तेज दौड़ने वाला घोड़ा तो उसके पास होना चाहिए | साधु इस घोड़े का क्या करेगा | डाकू
उस घोड़े को किसी भी प्रकार प्राप्त करना चाहता था |
साधु को भी डाकू के मन के भाव का पता चल चुका था | अब साधु ने घोड़े की अधिक निगरानी
करनी शुरू कर दी थी | उसे भय था कि कहीं डाकू यह घोड़ा चुरा कर न ले जाए | लेकिन कई
महीने बीत जाने पर भी ऐसा कुछ नहीं हुआ | एक दिन साधु घोड़े पर बैठकर कहीं जा रहा था
तभी पीछे से उसे एक आवाज सुनाई दी दीन दुखियों की मदद करो | साधु घूमकर पीछे गया तो
उसने देखा वहां पेड़ के सहारे एक दीन-दुखी सा दिखने वाला व्यक्ति बैठा हुआ था | साधु
के पूछने पर दीन-दुखी व्यक्ति ने बताया कि उसे पास के गांव में वैद्य के पास अपने इलाज
के लिए जाना है | साधु ने उस दीन-दुखी व्यक्ति को घोड़े पर बिठा दिया तथा स्वयं घोड़े
की लगाम पकड़कर चलने लगा | कुछ ही दूरी पर जाने के बाद साधु को झटका लगा |
उसने देखा कि वह दीन-दुखी व्यक्ति
घोड़े पर तनकर बैठा हुआ है, और घोड़ा तेजी के साथ भाग रहा है | साधु को डाकू गब्बर
सिंह वाली बात याद आ गई | साधु ने कहा "रुको और मेरी बात सुनो" | डाकू रुक
गया और कहने लगा "आप की बात सुनूंगा लेकिन अब आपको घोड़ा वापस नहीं करूंगा"
| साधु ने कहा कि “मैं आपसे घोड़ा बिल्कुल भी वापस नहीं मांगूगा लेकिन आपको मुझे एक
आश्वासन देना होगा” | डाकू ने फौरन आश्वासन
देने के लिए अपनी सहमति दे दी | तब साधु ने कहा कि “तुम आज की इस घटना का किसी को जिक्र
नहीं करना” |
डाकू ने सहमति देते हुए इसका
कारण पूछा | साधु ने कहा की यह बात किसी को बताओगे तो लोग दीन दुखियों पर विश्वास नहीं
करेंगे | डाकू घोड़ा लेकर अपने अड्डे पर चला गया लेकिन उसके मन में बार-बार यही विचार
आता रहा कि साधु ने यह क्यों कहा कि लोग यह सब जानने के बाद दीन दुखियों पर विश्वास
नहीं करेंगे | बहुत सोचने पर डाकू को यह समझ आ गया था कि यह सब बताने से लोगों का अच्छाई
और भलाई से विश्वास उठ जाएगा | साधु का कथन सर्वथा सत्य था | उसे ऐसा नहीं करना चाहिए
| ऐसा सोच कर वह चुपचाप रात को घोड़ा साधु
के अस्तबल में बांध कर चला गया |
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