घनश्याम और उसकी पत्नी एक बहुत
ही छोटे से गांव में रहते थे | उनके पास एक बहुत ही छोटा सा खेत का टुकड़ा था | खेतों
में पूरे साल मेहनत करने के बावजूद भी भरपेट खाना खाने लायक आमदनी भी नहीं होती थी
| छोटा गांव होने के कारण मजदूरी का काम भी कभी-कभी ही मिल पाता था |
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घनश्याम की एक बेटी भी थी | वक्त
के साथ-साथ वह भी तेजी से बड़ी होने लगी | अब वह 12 वर्ष की हो चुकी थी | घनश्याम और
उसकी पत्नी को बेटी की शादी और उसके भविष्य की चिंता सताने लगी थी क्योंकि उनके पास
दिन में दो समय खाने के लायक भी आमदनी नहीं
थी | ऐसे में बेटी की शादी के लिए धन की व्यवस्था करना उनके लिए मुश्किल ही नहीं नामुमकिन
था |
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इसी तनाव के चलते हुए एक दिन घनश्याम
और उसकी पत्नी ने एक कठोर निर्णय ले लिया | उन्होंने दिल पर पत्थर रखकर बेटी की हत्या करके उसे समाप्त करने का निर्णय ले लिया था | अगले दिन सुबह मां ने बेटी
को बहुत प्यार से तैयार किया और बार बार उसको
प्यार से गले लगाने के बाद दुखी दिल से अपने पति के साथ भेज दिया | घनश्याम फावड़ा और
एक चाकू लेकर बेटी के साथ जंगल की तरफ रवाना हुआ |
थोड़ी दूर जाने पर उसके पांव में एक कांटा चुभ गया | वह दर्द से कराह उठा | बेटी से पिता का दुख देखा
नहीं गया उसने अपने पिता के पांव से कांटा निकाला और अपनी चुनरी फाड़कर पिता के पैर
में पट्टी बांध दी | वह दोनों फिर से जंगल की ओर बढ़ने लगे | थोड़ी देर में ही वह घने
जंगल में पहुंच गए | घनश्याम ने फावड़े से गड्ढा खोदना शुरू कर दिया | बेटी एक तरफ बैठ
कर प्यार भरी निगाहों से पिता को देखने लगी | थोड़ी देर में अत्यंत गर्मी के कारण घनश्याम
पसीने से भीग गया और थक कर बैठ गया |
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उसके चेहरे पर दुख और मायूसी के
भाव स्पष्ट दिखाई दे रहे थे | बेटी से पिता का दुःख फिर से देखा नहीं गया वह पिता के
पास गयी और उसके चेहरे का पसीना अपनी चुनरी से पोंछ दिया | बेटी ने कहा “पिताजी अब
आप आराम कर लो गड्ढा मैं खोद देती हूं” | यह कहकर वह फावड़ा लेकर गड्ढा खोदने लगी
|
घनश्याम बेटी को देख रहा था और सोच रहा था कि इसकी
हत्या करके इसे दबाने के लिए ही मैं यह गड्ढा खोद रहा हूं और इस मासूम को इसकी जानकारी
भी नहीं | यह सोचते हुए उसकी आंखों से आंसुओं की धारा बहने लगी | घनश्याम के धैर्य
का बांध टूट चुका था | उसने बेटी को गले से लगा लिया और उसके आगे हाथ जोड़कर कहने लगा
कि "मुझे माफ कर दे मेरी बेटी मैं एक बहुत बड़ा गुनाह करने जा रहा था | तू सचमुच
मेरा भाग्य नहीं सौभाग्य है अब मैं शहर जाकर ज्यादा मेहनत करूंगा और तेरी धूमधाम से
शादी करूंगा" |
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