एक संत थे वह धार्मिक अंध-विश्वासों
और आडंबरों में बिलकुल भी विश्वास नहीं रखते थे | वह अपने भक्तों के अज्ञानता के अंधकार
को दूर करने का भरसक प्रयास करते थे | वह उन्हें ज्ञान का उजाला फैलाने वाले और सकारात्मक
सोच वाले प्रवचन सुनाते थे | दूर-दूर से शिष्य संत जी के प्रवचन सुनने के लिए उनके आश्रम में आते थे
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एक बार उनके शिष्यों ने धार्मिक यात्रा पर जाने का
कार्यक्रम बनाया | तीन-चार दिन का कार्यक्रम बनाया गया था | एक ही रूट के कुछ धार्मिक
स्थानों के दर्शन करने और धार्मिक स्थानों के पवित्र जल से स्नान करके आने का कार्यक्रम
बनाया गया था | उन्होंने संत जी को भी साथ में जाने के लिए आमंत्रित किया | संत जी
ने कहा “मैं तो आपके साथ तीर्थ यात्रा पर जाने में असमर्थ हूं लेकिन आप मेरे स्थान
पर इस कद्दू को अपने साथ ले जाए | जिस-जिस धार्मिक स्थान पर आप पवित्र जल से स्नान
करें इस कद्दू को भी उसी जल से स्नान करा दीजिएगा” |
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संत ने यह कहते हुए एक बड़ा सा
कड़वा कद्दू तीर्थ यात्रा पर जाने वाले शिष्यों को दे दिया | शिष्यों ने भी गुरु के
कहे हुए शब्दों का भावार्थ न समझते हुए उस कद्दू को अपने साथ तीर्थ स्नान करवाने के
लिए ले लिया | शिष्यों का दल तीर्थ यात्रा के लिए चला गया | अब जहां-जहां पर शिष्य
धार्मिक स्थल पर पवित्र जल से स्नान करते थे वहां पर कद्दू को भी स्नान करवा देते थे
| इस प्रकार शिष्य अपने गुरु के आदेश का पालन कर रहे थे | शिष्य पवित्र जल में बार-बार
श्रद्धा भाव से डुबकी लगाते थे | कद्दू को
भी उतनी ही बार पवित्र जल में श्रद्धा भाव
से डुबकी लगवा देते थे |
तीन-चार दिन के बाद शिष्य और
वह कद्दू निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार तीर्थ
यात्रा करके वापस संत जी के आश्रम में आ गए | संत जी ने यात्रियों के भोजन की व्यवस्था
की हुई थी | शिष्यों ने आकर कद्दू संत जी को दे दिया| संत जी ने हलवाइयों से कह कर उस कद्दू की विशेष रूप से सब्जी बनवा दी थी | भोजन बनने के बाद सभी शिष्यों के लिए परोस दिया गया था |
भोजन करते हुए सभी शिष्यों ने पूरी, छोले, हलवे आदि
पकवानों की प्रशंसा की लेकिन उन्हें कद्दू की सब्जी कड़वी लगी | शिष्यों ने संत जी
को बताया "कद्दू की सब्जी तो कड़वी है" | संत जी ने आश्चर्य प्रकट करते हुए
कहा "यह सब्जी तो उसी कद्दू से बनी हुई है जो तीर्थ स्थान करके आया है | यह कद्दू
तीर्थ स्नान पर जाने से पहले भी कड़वा था और
इतने तीर्थ स्थानों के पवित्र जल से स्नान करने के बाद भी यह कड़वा ही है" | सभी शिष्यों को अब
संत जी के मन का भाव समझ आ गया था | उन्हें समझ आ गया था कि तीर्थ स्नान करके केवल
तन साफ नहीं करना होता बल्कि मन भी साफ करना होता है |
Very nice
ReplyDeleteThanks for your nice comment.
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