चंद्र प्रकाश जी की उम्र लगभग 75 वर्ष हो गई थी | घर में वह स्वयं
और उनकी पत्नी दोनों ही रहते थे | बेटी की शादी पहले ही कर दी थी और इसी शहर में उसका
ससुराल था | उनका इकलौता पुत्र इंजीनियरिंग की शिक्षा प्राप्त करने के बाद विदेश में
नौकरी कर रहा था | तीन वर्ष पहले अचानक उनकी
पत्नी का निधन हो गया था | बेटा मां की मृत्यु
का समाचार मिलने पर विदेश से वापस आ गया था
और 15 दिन यहां पर रहने के बाद वापस विदेश चला गया | अब घर में चंद्र प्रकाश जी और
उनकी तनहाई ही रह गए थे |
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पत्नी की मौत के दुख और बढ़ती उम्र के कारण उन्हें जल्द ही बीमारी ने
घेर लिया | अब उन्होंने घर से निकलना प्रायः
बंद ही कर दिया था | उनकी दुनिया अब घर तक ही सीमित होकर रह गई थी | उनकी बेटी
जो कि 5-६ किलोमीटर की दूरी पर रहती थी वह
रोज आकर पिता के लिए खाना बना देती थी | उनके साथ रोज कुछ समय बिताकर उनका मन बहलाने की कोशिश करती थी |
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एक दिन उनकी बेटी रजनी ने अपने गुरु जी से
प्रार्थना की कि उनके पिता बीमार हैं और पलंग पर लेटे रहते हैं | एक बार उनसे मिलकर
उनके लिए प्रार्थना करें और उन्हें दुख और बीमारी की स्थिति में भी खुश रहने के लिए कुछ ज्ञान और प्रेरणा दें | गुरुजी
रजनी के साथ चंद्र प्रकाश जी से मिलने उनके घर आ गए | रजनी गुरु जी को अपने पिता के
पास बैठाकर खुद उनके लिए खाना बनाने के लिए
रसोई में चली गई | गुरुजी ने उनका हालचाल पूछने के बाद कमरे मैं चारों तरफ एक नजर दौड़ाई
| उन्होंने देखा कि कमरे में एक अतिरिक्त कुर्सी की व्यवस्था पहले ही की हुई थी | उन्होंने चंद्र प्रकाश जी से कहा ऐसे
लगता है आपको मेरे आने का पहले से अनुमान था |
मेरे लिए एक अतिरिक्त कुर्सी का पहले से ही आपने इंतजाम किया हुआ है | तब चंद्र
प्रकाश जी ने कहा कि मैं आपको इस अतिरिक्त पड़ी हुई कुर्सी का राज बताता हूं | यह राज मैंने आज तक अपनी बेटी और किसी को भी नहीं बताया | इसके बाद चंद्र प्रकाश जी ने बताया कि वह एक नास्तिक प्रवृत्ति
के व्यक्ति थे | उन्होंने जीवन में कभी भगवान की पूजा, प्रार्थना आदि की ही नहीं थी
| तब चंद्र प्रकाश जी ने बताया कि वह एक नास्तिक
सी प्रवृत्ति के व्यक्ति थे | वह मंदिर में
कभी कभी जाते तो अवश्य थे | उन्हें भगवान की पूजा, प्रार्थना आदि का कोई ज्ञान नहीं
था |
पत्नी
की मृत्यु के पश्चात एक बार उनका एक मित्र घर में आया और उसने बताया की प्रार्थना भगवान
से सीधे बात करने का तरीका होती है | उसी ने सुझाव दिया कि अपने सामने एक खाली कुर्सी
को रखो | फिर मन में ऐसा विश्वास और भाव रखो कि उस कुर्सी पर साक्षात भगवान खुद विद्यमान हैं | फिर
भगवान से बिल्कुल ऐसे बातें करो जैसे कि अभी आप मुझसे कर रहे हो | मैंने दोस्त की सलाह पर ऐसा करके देखा मुझे बहुत ही अच्छा महसूस
हुआ | उसके बाद तो मैं रोज ही घंटों ऐसे ही भगवान से बातें करने लगा | लेकिन मैं यह
सावधानी भी रखता था कि मुझे बातें करते हुए मेरी बेटी न देख ले | अन्यथा उसे ऐसा भ्र्म
हो जाता कि मुझे कोई मानसिक बीमारी हो गई है | गुरु जी ने यह सब बातें सुनने के बाद
चंद्र प्रकाश जी के लिए भगवान से प्रार्थना की और उन्हें अपना नियम ऐसे ही जारी रखने
के लिए कहा | गुरूजी चंद्र प्रकाश जी से विदा लेकर चले गए |
कुछ दिनों के बाद गुरु जी से मिलने पर रजनी ने बताया कि जिस दिन आप मेरे पिताजी से मिले
थे उसके कुछ घंटो के बाद ही उनकी मृत्यु हो
गई थी | गुरूजी ने पूछा कि उनकी मृत्यु कैसे हुई | रजनी ने बताया अपने अंत
समय तक वह काफी शांत और प्रसन्नचित्त थे | उन्होंने मेरे सिर पर प्यार से हाथ फेरकर
आशीर्वाद भी दिया था | मैं कुछ समय के लिए घर से बाहर गई थी | जब वापस घर आई तो उनकी
मृत्यु हो चुकी थी | एक अजीब बात यह लग रही थी कि उनकी मुद्रा ऐसे थी जैसे कि वह खाली
कुर्सी पर किसी की गोद में अपना सर रखकर सो रहे हों | गुरु जी समझ गए थे कि चंद्र प्रकाश
जी किसकी गोद में सर रखकर सो रहे थे | उनकी
श्रद्धा देखकर गुरुजी की आंखें नम हो गई | गुरूजी ने बहुत आहिस्ता से बस इतना ही कहा कि काश मेरी मृत्यु पर भी भगवान मुझे इतने प्यार से लेने आएं |
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