एक
महान दार्शनिक तथा संत थे | उनके ज्ञान के कारण उनकी ख्याति सर्वत्र फैली हुए थी |
उनके अच्छे स्वभाव से भी सभी प्रभावित थे | उनकी वाणी भी बहुत मधुर एवं प्रभावशाली
थी | उनका यह नियम था कि वह सत्संग करते समय पहले प्रवचन करते थे, उसके बाद सत्संग
में उपस्थित श्रद्धालुओं की जिज्ञासाओं एवं प्रश्नों का उत्तर देकर निवारण करते थे | श्रद्धालु भी अपनी जिज्ञासाओं और प्रश्नों और
का सरल भाषा में उत्तर पाकर संतुष्टि का अनुभव करते थे |
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एक दिन प्रतिदिन के नियम के अनुसार संत जी
ने पहले प्रवचन किये उसके बाद श्रद्धालुओं के प्रश्नों और उत्तर का कार्यक्रम शुरू
हो गया | एक श्रद्धालु ने किसी विषय पर कुछ जानने की जिज्ञासा प्रकट की | संत जी ने
उस विषय पर उस श्रद्धालु को धर्म के अनुसार जानकारी अपनी मधुर वाणी में दे दी | श्रद्धालु
उस उत्तर से संतुष्ट नहीं हुआ |
वह
संत जी से बहस करने लगा | संत जी शांत भाव से मुस्कुराते हुए उसकी बात पूरे ध्यान से
सुनते रहे | संत जी का निरंतर मुस्कुराते रहना किसी कारण श्रद्धालु को अच्छा नहीं लगा | वह थोड़ा क्रोधित
होते हुए ऊंची आवाज में बोलने लगा तथा संत जी को बुरा भला भी कहने लगा | संत जी अपने
स्वभाव के अनुसार मुस्कुराते हुए उसकी बात
सुनते रहे | श्रद्धालु का गुस्सा और अधिक बढ़ गया था और वह संत जी के प्रति अपशब्दों
का प्रयोग करने लगा था | लेकिन संत जी के चेहरे पर अभी भी मुस्कुराहट और शांति के भाव
पहले के समान ही बने हुए थे | संत के सेवकों
को श्रद्धालु का इस तरह दुर्व्यवहार करना बुरा लगा | कुछ सेवक संत के समर्थन में बाजू
चढ़ाते हुए आगे आ गए थे | अन्य श्रद्धालु भी उस व्यक्ति को जबरदस्ती पकड़कर आश्रम से बाहर ले जाने का प्रयत्न करने लगे थे
| संत ने अपने सेवकों को और दूसरे श्रद्धालुओं को दखल न देने का संकेत किया | थोड़ी
देर असभ्यता से बोलने के बाद वह व्यक्ति सत्संग
स्थल से बाहर चला गया |
सत्संग समाप्त होने पर सेवकों ने संत से कहा
कि आपने उस बदतमीज व्यक्ति पर क्रोध क्यों नहीं किया | आपने उसके दुर्व्यवहार पर प्रतिक्रिया
क्यों नहीं की | यदि आप हमें नहीं रोकते तो हम उस व्यक्ति को उसके बुरे व्यवहार के
लिए दंडित अवश्य करते |
संत ने उत्तर दिया कि “ तेजाब सबसे अधिक हानि
उस बर्तन को ही पहुंचाता है, जिसमें तेजाब होता है | इसी प्रकार क्रोध उसी व्यक्ति
को सबसे अधिक हानि पहुंचाता है, जिसके मन और दिमाग में क्रोध होता है “ | दूसरे द्वारा
निंदा करने से हमारी प्रसन्नता प्रभावित नहीं होनी चाहिए | हमारी प्रसन्नता का नियंत्रण यदि दूसरे
व्यक्तियों द्वारा किया जाता है तो हम जीवन में आनंदित नहीं रह सकते | क्रोध मनुष्य
के पतन का मार्ग होता है, जिसका रचयिता वह
स्वयं ही होता है | क्रोध में आकर किए गए निर्णय अधिकतर गलत साबित होते हैं | क्रोध
मनुष्य की समझ को समाप्त कर देता है | क्रोध जिस पर किया जा रहा है उसकी तुलना में क्रोधी को स्वयं अधिक हानि पहुंचाता है |
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