गिरधारी लाल जी की अकस्मात मृत्यु
हो गई थी | गिरधारी लाल जी एक व्यापारी थे | उनका व्यवसाय और आर्थिक स्थिति सुदृढ़ थी
| उनकी पत्नी की बहुत पहले ही मृत्यु हो चुकी
थी | उन्होंने ही अपने बेटे और बेटी की मां की कमी को भी स्वयं ही पूरा करते हुए परवरिश
की थी | बेटी की शादी करके वह उसे उसके सुसराल
विदा कर चुके थे | वह अपने इकलौते पुत्र राजेश
के लिए जीवन पर्यन्त कड़ी मेहनत करके पर्याप्त सम्पति छोड़ गए थे | घर में गम का माहौल
था | सभी सगे संबंधी, मित्र तथा पड़ोसी अंतिम संस्कार में शामिल होने के लिए इकट्ठा
हो चुके थे |
पंडित जी ने अंतिम धार्मिक औपचारिकताएं
पूरी कर दी थी | पंडित जी ने श्मशान भूमि ले जाने के लिए अर्थी उठाने का इशारा किया
| जैसे ही अर्थी उठाने लगे तभी अकस्मात जोर
से आवाज आई ठहरो | एक आदमी ने आगे आकर अर्थी को पकड़ लिया | ऐसी किसी को अपेक्षा नहीं
थी, इसलिए सभी हैरान होकर उसकी ओर देखने लगे | उसने अपना परिचय
श्यामलाल के रूप में दिया और बताया कि उसने गिरधारी लाल जी से 20 लाख रूपये लेने हैं | मृतक के बेटे ने कहा कि उसे इस लेन-देन की
कोई जानकारी नहीं है | अतः भुगतान करने से साफ इनकार कर दिया | जबकि राजेश भुगतान करने
में सक्षम था | वैसे मृत्यु के कारण वहां
उपस्थित सभी लोगों के चेहरे पर दुख के भाव थे, लेकिन राजेश की पत्नी के चेहरे पर दुःख
का कोई चिन्ह दिखाई नहीं दे रहा था | वह ऐसे सज धजकर घूम रही थी जैसे कि किसी पारिवारिक
उत्स्व में आयी हो | श्यामलाल ने मृतक के भाइयों से भी अपने 20 लाख रुपए देने का निवेदन
किया लेकिन उन्होंने भी इस बात को सुना अनसुना कर दिया | श्यामलाल ने कहा कि वह गिरधारी
लाल जी की अर्थी को अंतिम संस्कार के लिए तभी जाने देंगे जब उनकी धन राशि का भुगतान
कर दिया जाएगा |
गिरधारी लाल जी की समाज में अच्छी मान मर्यादा और प्रतिष्ठा बनी हुई थी | समाज में उन्हें सम्मान की नजर से
देखा जाता था | जीवन पर्यन्त उनकी ईमानदारी पर कभी किसी ने संदेह नहीं किया था | लेकिन
इस समय उनकी ईमानदारी पर प्रश्नचिन्ह सा लगता दिख रहा था | बड़ी विचित्र स्थिति उत्पन्न
हो चुकी थी | इस अप्रत्याशित विवाद की सूचना अंदर बैठी हुई महिलाओं तक भी पहुंच गयी
थी | गिरधारी लाल जी की बेटी को यह सब सुनकर गहरा आघात लगा | उसने बाहर आकर अपने सारे जेवर उतारकर श्यामलाल को
दे दिए तथा आश्वासन दिया कि वह बकाया राशि
की भी एक-एक पाई का भुगतान कर देगी, उसके पिता की अर्थी को न रोका जाए | जहां एक और
गिरधारी लाल जी के बेटे ने पिता की बदनामी
की परवाह ही नहीं की, वहीं दूसरी ओर बेटी ने यह कदम उठा कर प्रमाणित कर दिया कि बेटियां
अभिशाप नहीं वरदान होती हैं | बेटा पिता के प्रति अपना कर्तव्य भूल गया, लेकिन बेटी को अपने पिता और मायके के प्रति अपनी जिम्मेदारी याद रही | एक अबला नारी में इतनी ज्यादा पारिवारिक जिम्मेदारियों
का बोझ उठाने की अद्भुत शक्ति कहां से आ जाती है | शायद इसीलिए नारी जाति को सम्मान
देने के लिए कहा गया है कि जहां नारियों की पूजा होती है वहां देवताओं का वास होता
है |
अब उस श्याम लाल नाम के व्यक्ति
ने सबको संबोधित करते हुए पहले क्षमा याचना की, फिर बताया कि उसने गिरधारी लाल जी से
20 लाख रुपए लेने नहीं है बल्कि उन्हें देने हैं | इतना सुनते ही निर्विकार भाव से
अब तक घूमने वाली बहू ने पिताजी पिताजी कहकर जोर से रोने का अभिनय करना शुरू कर दिया
| अभिनय इतना सजीव था कि उसे सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का पुरस्कार दिया जा सकता था |
यह बात सुनकर बेटी के चेहरे पर गहरे संतोष के भाव आ गए | उसने ऑंखें आसमान की और उठाकर
मानो भगवान को धन्यवाद दिया | श्याम लाल ने आगे बताया कि आज वह कर्ज की राशि चुकाने
आया था | यहां पर आकर देखा कि गिरधारी लाल जी की मृत्यु हो चुकी है | ईमानदारी की कसौटी
पर खरा उतरने के लिए वह गिरधारी लाल के असली वारिस को ही इस राशि का भुगतान करना चाहता
था | वह गिरधारी लाल जी के परिवार के सदस्यों को नहीं जानता था, इसलिए उसने यह नाटक किया था | उसने कहा कि गिरधारी
लाल जी के मान-सम्मान की रक्षा करने वाली उनकी बेटी ही उनकी असली वारिस है | ना बेटा वारिस है ना भाई वारिस है | यह कहते हुए
उन्होंने वह राशि गिरधारी लाल जी की बेटी को सौंप दी |
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