जीवन में अति महत्वाकांक्षी बनकर क्या खुशियां मिल पाती हैं
? कई बार सुख-सुविधाएं तो मिल जाती हैं, लेकिन
उसके लिए जीवन की खुशियों की कीमत चुकानी पड़ती
है |
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महेश का जीवन
सुख पूर्वक बीत रहा था | वह एक सरकारी कार्यालय में अच्छे पद पर कार्यरत था | उसके
खुशियों भरे परिवार में उसकी पत्नी एक बेटी और एक बेटा ही थे | बेटे राजेश को जीवन
में अपने से भी ज्यादा सफल बनाने की अभिलाषा से उसने इंजीनियरिंग में दाखिला दिलवाया
था | आज राजेश का अंतिम सेमेस्टर की परीक्षा
का परिणाम आया था | वह अच्छे अंक लेकर इंजीनियरिंग की परीक्षा में सफल
हुआ था | आज महेश फूला नहीं समा रहा था | उनके खानदान में पहली बार कोई इंजीनियर बना था | वह स्वयं को गौरवान्वित महसूस कर रहा था |
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कॉलेज में आठवें सेमेस्टर की पढ़ाई के दौरान ही विभिन्न कंपनियां भर्ती के लिए कॉलेज में आई थी | राजेश का चयन एक बड़ी बहुराष्ट्रीय कंपनी में पहले ही हो चुका था | परीक्षा पूर्ण करते ही राजेश ने उस कंपनी में नौकरी शुरू कर दी | कुछ समय के बाद एक विदेश में स्थित कंपनी की ओर से राजेश को विदेश में नौकरी करने का प्रस्ताव मिला | उसने इस विषय में घर में चर्चा की | इस कंपनी में राजेश को दो लाख रूपये प्रतिमाह वेतन मिलना था | महेश की पत्नी पुत्र मोह की वजह से राजेश के विदेश में नौकरी करने के पक्ष में नहीं थी | महेश को अपने पुत्र राजेश के उज्जवल भविष्य के लिए विदेश में नौकरी करना उचित लगा | अपने करीबियों से ऊपर उठने की इच्छा भी इस निर्णय में निहित थी | जल्द ही राजेश नौकरी करने विदेश चला गया |
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समय जैसे पंख
लगाकर तेजी से उड़ने लगा | महेश ने अपनी बेटी का विवाह दिल्ली के ही एक सरकारी अधिकारी
से कर दिया | राजेश को भी विदेश में नौकरी करते हुए दो-तीन साल हो गए थे | उसका भी
एक भारतीय कन्या से विवाह सम्पन्न कर दिया गया | महेश अब रिटायर हो चुका था | महेश
को रिटायर होने के बाद पेंशन मिल रही थी, जो कि उसके मासिक खर्चों के लिए पर्याप्त
थी | इसलिए राजेश के कभी कभार पूछने पर भी उसने कभी राजेश से पैसे नहीं लिए थे | कुछ
ही वर्षों में राजेश के घर में भी एक पुत्र और एक पुत्री ने जन्म लिया अब राजेश का भारत आना कम हो गया था | इससे पहले वह
साल में एक बार भारत में अवश्य आता था जबकि फोन पर तो प्रायः रोज ही बात हो जाती थी
|
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एक दिन महेश
को राजेश का फोन आया कि वह विदेश में ही अपने रहने के लिए एक मकान खरीदना चाहता है
जिससे कि उसका भविष्य सुरक्षित हो सके | मकान खरीदने के लिए राजेश के पास पैसे कम पड़
रहे थे | महेश सोचने लगा कि बेटे का भविष्य सुरक्षित करने के लिए उसे अपने भविष्य की
सुरक्षा को दांव पर लगाना पड़ेगा | महेश ने सारा जीवन पाई-पाई करके जमा की गई पूंजी का अधिकांश भाग राजेश को मकान खरीदने के लिए
भेज दिया | वह समझ नहीं पा रहा था कि बेटे के विदेश में घर खरीद लेने की उपलब्धि पर वह खुश हो या दुखी | इसका
कारण यह था कि मकान खरीदने के बाद तो बेटे की भारत वापसी की आशा ही समाप्त सी होने
लगी थी |
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तीन साल की लम्बी
अवधि के बाद राजेश अपने परिवार के साथ भारत 20 दिन की छुट्टी लेकर आया था | भारत आते
ही पहले वह अपने ससुराल चला गया था | उनके परिवार के विवाह समारोह में शामिल होकर 5
दिन बाद राजेश घर पहुंचा था | महेश और उसकी पत्नी के जीवन में जैसे फिर से बहार सी
आ गई थी | बच्चों के आने से उसका घर खुशियों से भर गया था | यह दम्पति इन खुशियों को
अभी अपने दामन में समेट भी नहीं पाए थे कि बच्चों की तबियत यहां के मौसम के कारण बिगड़ने
लगी | बहू का मूड भी ससुराल में इतनी अधिक आवभगत के बावजूद भी बिगड़ने लगा था | दो दिन
बाद ही बेटे ने अगले दिन की अपनी वापसी करने की बात बताकर चौंका दिया | वह बेटे को
हमेशा के लिए भारत वापस आकर बसने की बात अभी कह भी नहीं पाया था | वह उसे कहना चाहता
था कि 'अपने घर में भी है रोटी' | वह जीवन
में अपनों से आगे बढ़ने की चाह में, अपनों से ही दूर हो गया था |
आज बच्चे वापस जा रहे थे महेश और उसकी पत्नी उन्हें छोड़ने हवाई अड्डे पर आये हुए थे | माता पिता से विदा लेते हुए चरण स्पर्श करने के बाद बेटे ने अगले साल आने का आश्वासन दिया | महेश जीवन की इस संध्या वेला में अब तो ऐसे कच्चे केले भी नहीं खरीदता था जो की कल पककर खाने लायक तैयार होने हों | महेश सोचने लगा कि बेटे को जीवन में दोबारा देखने की हसरत क्या पूरी हो पायेगी | बेटा अगली बार मुझसे मिलने आएगा या मुझे हरिद्वार में प्रवाहित करने आएगा | महेश इन सोचों में उलझा ही हुआ था कि बेटे का जहाज उड़ने और नजरों से ओझल होने लगा | जहाज के साथ ही उसके जिगर का टुकड़ा भी हो रहा था उससे दूर, दूर, दूर...
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